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अपनी पत्नी सुशीला हरबोला के साथ नैनीताल के कारसेवक भुवन हरबोला.
भुवन हरबोला बताते हैं कि उस दौर में राम मंदिर में दर्शन करना वाकई बड़ी चुनौती थी. कारसेवा के वक्त के उनके दो साथी देवी दत्त जोशी व सुशील त्रिवेदी आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन राम मंदिर का भूमिपूजन उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है.
हमारे संघर्षों की जीत हुई
राम मंदिर के आंदोलन से जुड़े नैनीताल के भुवन हरबोला आज भी अयोध्या के उन दिनों को याद कर खौफ में आ जाते हैं. नैनीताल में दुकान चलाने वाले कारसेवक हरबोला कहते हैं कि 5 अगस्त को उनका सपना सच हो रहा है और उनके संघर्षों की जीत हुई है. यह उनलोगों के लिए जवाब भी है जो कहते थे कि राम मंदिर नहीं बन सकता. न्यूज 18 संवाददाता से भुवन हरबोला ने कहा कि वे नैनीताल से अपने दो अन्य साथियों के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए थे. आंदोलन के दौरान उन्होंने कई कष्ट भी सहे हैं और राम की नगरी में दिवारों पर गोलियों के निशान आज भी खाली वक्त में याद आ जाते हैं. कारसेवक भुवन हरबोला बताते हैं कि उस दौर में राम मंदिर में दर्शन करना वाकई बड़ी चुनौती थी. कारसेवा के वक्त के उनके दो साथी देवी दत्त जोशी व सुशील त्रिवेदी आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन राम मंदिर का भूमिपूजन उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है.
आंदोलन के लिए छोड़ा था घरदरअसल तीन लोग भुवन हरबोला, देवी दत्त जोशी और सुशील त्रिवेदी नैनीताल से अयोध्या के लिए निकले. हल्द्वानी से जत्थे के साथ ये तीनों अयोध्या में राम के नारे लगाते हुए पहुंच गए. रास्ते में कई कठनाइयों का सामना करना पड़ा, पर रामभक्तों का जोश उन्हें आगे जाने का हौसाला दे रहा था. घर की चिंता को पीछे छोड़ ये लोग आगे बढ़ते गए. राम के धाम को बनाने के लिए लोगों को जोड़ने का अभियान शुरू किया. कई घरों से मंदिर के लिए जल एकत्र किया. कभी दीपों को जलाने का अभियान जारी रखा. पुलिस प्रशासन पीछे लगा रहा, लेकिन छिपते-छिपाते आंदोलन को धार देते रहे. हांलाकि आज उनकी पत्नी सुशीला हरबोला कहती हैं कि उन दिनों ये घर से चले जाते थे तो हर वक्त डर सा लगा रहता था. कई बार पुलिस पूछताछ के लिए घर आ जाती थी. सुशीला हरबोला कहती हैं कि बच्चे छोटे होने के चलते मन में कई सवाल उठते थे, मगर आज राम मंदिर के निर्माण के भूमिपूजन की तारीख तय होने से लगाता है कि इनके संघर्षों की जीत हुई है.
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