Ladakh Standoff: अकेले दम पर मोर्चा संभालने का भारत को विश्वास, चीन भी हैरान

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Edited By Shatakshi Asthana | एएनआई | Updated:

चीन पर कोई चांस नहीं लेगी सेना, विंटर प्लान पर काम शुरूचीन पर कोई चांस नहीं लेगी सेना, विंटर प्लान पर काम शुरू
हाइलाइट्स

  • भारत और चीन के बीच लद्दाख तनाव पर यूरोपियन थिंक-टैंक की रिपोर्ट
  • EFSAS का कहना है भारत अकेले दम पर टकराव को हो गया है विश्वस्त
  • बातचीत के साथ-साथ अपनी ताकत भी बढ़ा रहा है, चीन भी हुआ है हैरान
  • अमेरिका या Quad देशों की मदद लेने के लिए फिलहाल तैयार नहीं भारत

ऐम्सटर्डैम

चीन के साथ पूर्वी लद्दाख पर सीमा विवाद के बाद भले ही पूरी दुनिया, खासकर अमेरिका भारत के साथ हो, भारत अकेले दम पर ही चीन को चुनौती देने का विश्वास रखता है। यूरोप के एक थिंक टैंक का दावा है कि अमेरिका ने भारत को पेइचिंग के खिलाफ Quad का गठन करने का मौका भी दिया लेकिन भारत ने दिखाया है कि वह खुद ही चीन के सामने किसी भी मुद्दे पर मजबूती से खड़ा हो सकता है। जून में चीन और भारत की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच कई वार्ताएं हुई हैं और पूरी तरह न सही, कुछ हद तक सीमा पर स्थिति सामान्य भी हुई है।

भारत के रुख से चीन हैरान

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (EFSAS) ने कहा है, ‘पैंगॉन्ग सो पर सेना पीछे करने के शुरुआती चरण में चीनी फिंगर 4 से फिंगर 5 पर गए लेकिन पहाड़ी के किनारे तैनाती जारी रखी। भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि चीन फिंगर 5 से हटकर वापस फिंगर 8 पर जाए। वहीं, चीन के प्रतिनिधि भारत से मांग कर रहे हैं कि वह फॉरवर्ड इलाकों से हटे लेकिन भारत ने तब तक हटने से इनकार कर दिया है जब तक चीन पूरी तरह से पीछे नहीं चला जाता।’ EFSAS का कहना है कि 2017 में डोकलाम की तरह यहां भी चीन की आक्रामकता के सामने भारतीय राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को दृढ़ रवैया और निश्चय ने चीन को हैरान कर दिया है।



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ताकत जुटा रहा है भारत

भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से EFSAS ने कहा है, ‘दोनों पक्षों को मान्य हों, ऐसे नतीजों पर पहुंचने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है लेकिन फिलहाल यथास्थिति कुछ वक्त तक बनी रहेगी।’ इसका मतलब है कि सर्दी आने पर और मुश्किल मौसम के बावजूद इतनी ऊंचाई पर दोनों देश अपने रुख पर कायम रहेंगे। भारत ने बड़ी मात्रा में ताकत जुटा ली है। जैसे हर साल भारत सियाचीन ग्लेशियर में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अभ्यास करता है, उसकी तैयारी भी की जा रही है।

चीन के खिलाफ अब तक कई कार्रवाई

  • चीन के खिलाफ अब तक कई कार्रवाई

    गलवान घाटी घटना के बाद भारत चीन के खिलाफ आर्थिक कार्रवाई की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। दो दशक बाद फिर से रंगीन टीवी के आयात पर रोक इसी दिशा में एक बड़ी कार्रवाई है। इससे पहले सरकार ने सरकारी खरीद में चाइनीज कंपनियों की एंट्री बैन कर दी थी। मतलब, केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से किसी भी तरह की सरकारी खरीद में चाइनीज कंपनियां बोली में शामिल नहीं हो सकती हैं। चीन से आने वाले FDI के नियम भी बदले जा चुके हैं।

  • चीन से 2100 करोड़ का आयात

    भारत हर साल हजारों करोड़ का रंगीन टीवी का आयात करता है। इसमें चीन की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है और धीरे-धीरे उसका मार्केट शेयर बढ़ रहा था। वित्त वर्ष 2019-20 भारत ने 78.1 करोड़ डॉलर (करीब 5800 करोड़, वर्तमान मूल्य के हिसाब से) कीमत के रंगीन टीवी आयात किये। इनमें से वियतनाम से 42.8 करोड़ डॉलर (करीब 3100 करोड़ रुपये) और चीन से 29.3 करोड़ डॉलर (करीब 2100 करोड़ रुपये) हुआ। पैनासोनिक इंडिया के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनीष शर्मा ने इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले एसेम्बल्ड टीवी सेट उपलब्ध होंगे।

  • DGFT से मंजूरी जरूरी

    टीवी आयात पर रोक को लेकर विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक नोटिफिकेशन में कहा, कि रंगीन टेलीविजन की आयात नीति को प्रतिबंधित कैटिगरी में डाल दिया गया है। ऐसे में DGFT की मंजूरी के बिना टीवी नहीं आयात किए जा सकते हैं। DGFT वाणिज्य मंत्रालय के तहत आता है।

  • इन देशों से भारत करता है टीवी आयात

    यह आयात प्रतिबंध 36 सेंटीमीटर से लेकर 105 सेंटीमीटर से अधिक की स्क्रीन आकार वाले रंगीन टेलीविजन सेट के साथ ही 63 सेंटीमीटर से कम स्क्रीन आकार वाले एलसीडी टेलीविजन सेट भी प्रतिबंध की कैटिगरी में हैं। भारत को टीवी का निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में चीन, वियतनाम, मलेशिया, हांगकांग, कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और जर्मनी शामिल हैं।

किसी भी टकराव के लिए मजबूत

EFSAS का कहना है कि भले ही चीन सीमा मुद्दे की जगह द्विपक्षीय संबंध सुधारने का लालच दे रहा हो, भारत की इस तैयारी से लगता है कि वह किसी भी तरह के गंभीर टकराव की स्थिति के लिए मजबूत है। संस्थान का कहना है, ‘चीन ने समय-समय पर सीमा पर भारत को परेशान किया है और दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापित करने के समझौते का उल्लंघन किया है। भारत भी अब इस बात को समझ रहा है कि वह अकेले इस मुद्दे से जूझ रहा है जिसका कोई फायदा नहीं है।’

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अपनी रक्षा के लिए कसर नहीं छोड़ रहा भारत

भले ही चीन भारत से ‘आसान रास्ता’ अपनाने को कह रहा हो, भारत का मानना है कि वह अब दृढ़ है और मजबूत है कि सीमा पर गंभीर टकराव के लिए खड़ा होकर चीन की अप्रत्याशित आक्रामक गतिविधियों का सामना कर सकता है। भारत को उम्मीद है कि मौजूदा टकराव को बातचीत से सुलझा लिया जाएगा लेकिन वह इस बात की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता कि अगर टकराव बढ़े तो वह अपने क्षेत्र की रक्षा कर सकता है। थिंक-टैंक ने यहां तक कहा है कि इसलिए बेहतर होगा कि दोनों देश आपसी सहमति से समाधान निकालें जिसमें चीन सम्मान के साथ पीछे हट जाए। इसमें चीन और भारत, दोनों के करीबी दोस्त रूस की बड़ी भूमिका भी बताई गई है।

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अमेरिका कर चुका है मदद की पेशकश

इस पूरे मामले में चीन के खिलाफ भारत को अपने साथ लेने की अमेरिका की कोशिश पर EFSAS ने यह भी कहा है कि जुलाई की शुरुआत में वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ मार्क मेडोज ने कहा था कि अमेरिका भारत और चीन के बीच विवाद में मजबूती से खड़ा रहेगा और आरोप लगाया था कि चीन के आसपास कोई भी उसकी आक्रामकता से बचा नहीं है। अमेरिका की मदद की पेशकश के बावजूद भारत ने फैसला किया है कि वह अमेरिका या किसी दूसरे देश की मदद तब तक नहीं लेगा जब तक हालात इतने गंभीर न हो जाएं। QUAD देशों- जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ फिलहाल भारत चीन के खिलाफ कोई फ्रंट बनाने की ओर नहीं कदम बढ़ा रहा है।

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भारत न गठबंधन का हिस्सा था, न होगा

EFSAS ने भारत के विदेश मंत्री के हवाले से लिखा है, ‘गठबंधन नहीं करना एक खास वक्त और भूगोलीय राजनीति के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाने वाला टर्म था। इसका एक पहलू स्वतंत्रता थी, जो हमारे लिए आज भी वाजिब है।’ हम कभी किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा नहीं थे और कभी होंगे भी नहीं। EFSAS का कहना है कि अमेरिका को भारत के साथ खड़े रहने के आम आश्वासन से आगे बढ़कर यह साफ करना होगा कि वह चीन के खिलाफ साथ देने को भारत को मनाने के लिए क्या ऑफर दे सकता है।

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फाइल फोटो

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