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घोसी तहसील में आजादी के परवानों ने शुरू किया अभियान
इतिहासकार बताते हैं कि गोबरही में मंगला की छप्पर में 13 अगस्त 1942 को एक गुप्त बैठक हुई. बैठक में घोसी तहसील मुख्यालय पर कब्जा किए जाने का निर्णय बदलने के बाद अगले दिन दुबारी में राम सुंदर पांडेय के जोशीले भाषण ने कांग्रेसियों को ऊर्जा प्रदान किया. 15 अगस्त को आजादी के दीवानों ने रामपुर डाकखाना और पुलिस चौकी, फतेहपुर डाकखाना, कठघरा आबकारी दुकान, उफरौली बीज दुकान आदि नेस्तानाबूद करते हुए मधुबन डाकखाना को फूंकने के बाद थाने का घेराव किया.
थाने में कलेक्टर के सामने ही तिरंगा फहराने का ऐलानथाने में मौजूद कलेक्टर मिस्टर निबलेट ने लगभग 30 हजार की भीड़ का घेराव देख थानेदार के माध्यम से प्रतिनिधिमंडल से वार्ता की पहल किया. वार्ता में मंगलदेव ऋषि, श्याम सुंदर मिश्र, रामसुंदर पांडेय, राम बहादुर लाल एवं रामवृक्ष चौबे से कलेक्टर ने स्वयं के थाना छोड़ने के बाद तिरंगा फहराने की शर्त रखी. लोगों ने इसके पीछे कोई राज छिपे होने का अंदेशा जताते हुए कलेक्टर की मौजूदगी में ही तिरंगा फहराने का ऐलान कर दिया.
तीन दर्जन से अधिक लोग हुए शहीद
राम बहादुर लाल ने ऋषि को गोद में उठाकर उनसे ही थाने पर चढ़ाई का आदेश मांगा. बस थाने के अंदर एवं छत पर चढ़े सिपाहियों की बंदूकें गरज उठीं. पहली गोली रामनक्षत्र पांडेय के सीने में लगी. इसके बाद भीड़ ने आपा खोया तो फिर पत्थरों की ऐसी बौछार की कि सिपाही, जमींदार एवं अन्य बंदूकची स्वयं को सुरक्षित करने में लग गए. गोलियों की बरसात में तीन दर्जन से अधिक लोग शहीद हो गए. कई शहीदों के परिजन हुकूमत के भय से लाश की शिनाख्त करने भी न आए.
इसके बाद जिले में फैला विद्राेह
इस कांड के बाद 17 अगस्त 1942 को मुहम्मदाबाद-खुरहट के बीच रेलवे लाईन उखाड़ने तथा दूरसंचार भंग करने का काम व्यापक स्तर पर किया गया. 21 अगस्त 1942 को रामलखन सिंह, श्याम नरायन सिंह, अवध नरायन सिंह के नेतृत्व में आन्दोलनकारियों के एक जत्थे ने मऊ-पिपरीडीह स्टेशन के बीच रेलवे लाइन तथा खम्भों को उखाड़ कर रेल व्यवस्था तथा संचार को ठप कर दिया. इसके पूर्व 17 अगस्त को इंदारा स्टेशन फूंक दिया गया.
खुरहट स्टेशन में लगा दी आग
मधुबन कांड से उत्तेजित क्रांतिकारियों ने रामशरण शर्मा के नेतृत्व में खुरहट स्टेशन पर हमला बोल दिया. वहां के कर्मचारियों ने क्रांतिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तो क्रांतिकारियों ने उन्हें बाहर निकाल कर वहां आग लगा दी. इसी क्रम में मऊ को मोहम्मदाबाद से जोड़ने वाले पुल को तोड़ने की कोशिश भी की गई लेकिन मऊ से पुलिस आ जाने के कारण क्रांतिकारी इधर-उधर हो गये थे.
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