[ad_1]

मेरठ के गांधी आश्रम में पहले की तरह ही तिरंगा आज भी लकड़ी के सांचे से बनाया जाता है.
गांधी आश्रम (Gandhi Ashram) संस्था के मंत्री पृथ्वी सिंह रावत कहते हैं कि इन तिरंगा कारीगरों की पीढ़ियां इसी काम में जुटी हैं. कोरोना संकट (Corona crisis) और लॉकडाउन (Lockdown) के बाद पहले से ही आर्थिक तंगी के शिकार इन कारीगरों की कमर टूट गई है. सरकार से मदद की दरकार है, अगर सरकार इनकी थोड़ी मदद कर दे तो हालात सुधर सकते हैं. हां इन सबके बावजूद तिरंगे को लेकर इनके जज्बे में कोई कमी नहीं है.
वक्त पर सैलरी भी नहीं मिल पा रही
जब गगन में राष्ट्रध्वज लहराता है तो मन गर्व से भर जाता है. देशभक्ति का अहसास न्यारा है, तभी सब कह उठते हैं विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा उंचा रहे हमारा… तिरंगा झंडा प्रतीक है हमारे देश के सम्मान का, इसके तले जो रोमांच महसूस होता है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है और सोचिए जरा जो इस तिरंगे को बनाते हैं उन्हें कितने गर्व की अनुभूति होती होगी. बता दें कि मेरठ में आज़ादी के बाद से तिरंगा झंडा बनाया जाता है. और इतनी तादाद में बनाया जाता है कि पूरे देश में यहीं के बने हुए झंडे फहरते हैं. लेकिन इस बार कोरोनाकाल में क्योंकि ज्यादा प्रभात फेरियां नहीं निकल रही हैं. बच्चों के स्कूल बंद चल रहे हैं इसलिए आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि तिरंगे की डिमांड ज्यादा नहीं है. नहीं तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के ऑर्डर मेरठ के गांधी आश्रम को मिला करते थे. आलम ये है कि तिरंगा बनाने वाले कारीगरों को वक्त पर सैलरी भी नहीं मिल पा रही है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है लेकिन जज्बा देखिए जनाब कहते हैं कि चाहे जो हो जाए लेकिन आखिरी सांस तक यही काम करते रहेंगे. भारत हमको जान से प्यारा है, सबसे न्यारा गुलिस्तां हमारा है….यही गीत गुनगुनाते हुए ये कारीगर सुबह से लेकर शाम तक जुटे रहते हैं. चरखा चलाते हुए बाबूजी कहते हैं कि इस काम मे उन्हें असीमित शांति मिलती है. शांति और समृद्धि के रंगों को ख़ुद में समेटे मेरठ का तिरंगा देशभर में लहराता है तो इनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि इस आन-बान-शान को तैयार करने में उनका भी अंश मात्र योगदान रहा है.
सरकार से मदद की दरकारगांधी आश्रम संस्था के मंत्री पृथ्वी सिंह रावत का कहना है कि अगर सरकार की तरफ से तिरंगा कारीगरों को कुछ मदद मिल जाए तो बेहतर होगा क्योंकि इन कारीगरों ने तिरंगे के अलावा कोई और काम न करने की कसम खाई है. उन्होंने बताया कि कई परिवार तो ऐसे है जो पीढ़ियों से इसी काम को करते आ रहे हैं. मेरठ में गांधी आश्रम के ऑर्डर पर सुभाषनगर के नत्थे सिंह का परिवार कई पीढ़ियों से तिरंगा बना रहा है. नत्थे सिंह का निधन हो चुका है. लेकिन तिरंगों को बनाने का काम उनके परिवार ने संभाल रखा है. मेरठ के गांधी आश्रम में पहले की तरह ही तिरंगा आज भी लकड़ी के सांचे से बनाया जाता है. सांचे के बीच में कपड़ा रखकर उस पर चक्र बनाया जाता है, इसके बाद कपड़े को केसरिया और हरे रंग से रंगा जाता है. एक तिरंगा बनाने में उसे कितने स्टेप से गुज़रना पड़ता ये भी जानकर आप हैरान रह जाएंगे. पहले चरखे से सूत काता जाता है फिर कपड़ा तैयार होता है. उसके बाद कपड़े की रंगाई होती है. फिर मानक के हिसाब से इसे तैयार किया जाता. बाद में तिरंगे के बीच के चक्र की छपाई होती है.
देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य कई राज्यों में सरकारी गैर सरकारी, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के दफ्तरों पर मेरठ में ही तैयार खादी के तिरंगे फहरते आए हैं. मेरठ में तिरंगा बनाने के कार्य में जुटे कारीगर बस यही दुआ करते हैं कि उनका सारा जीवन तिरंगा बनाने में ही समर्पित रहे. जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में भी यहीं से ध्वज भेजे जाते हैं. मेरठ में ही राष्ट्रीय ध्वज तैयार होता है.
[ad_2]
Source link