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पिता के इस संघर्ष को देखकर यूपी के आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा काफी भावुक हो गए.
पिता मज़दूर (Labour) है इसलिए ज़िंदगी की दुश्वारियों को जानता है. जो तकलीफ उसने उठायी वो बेटा (son) न भुगते इसलिए साइकिल पर ये सफर तय किया. जिसे देखने के बाद यूपी के चर्चित आईपीएस नवनीत सिकेरा काफी भावुक हो गए.
- News18Hindi
- Last Updated:
August 21, 2020, 10:43 AM IST
आईपीएस ने लिखा, ‘ये खबर देखी तो आंखे डबडबा गई अब से कुछ दशक पहले मेरे पिता भी मुझे मांगी हुई साईकल पर बिठा कर IIT का एंट्रेंस एग्जाम दिलाने ले गए थे. वहां पर बहुत से स्टूडेंट्स कारों से भी आये थे , उनके साथ उनके अभिभावक पूरे मनोयोग से उनकी लास्ट मिनट की तैयारी भी करा रहे थे, मैं ललचाई आंखों से उनकी नई नई किताबों (जो मैंने कभी देखी भी नहीं थी) की ओर देख रहा था और मैं सोचने लगा कि इन लड़कों के सामने मैं कहां टिक पाऊंगा और एक निराशा सी मेरे मन में आने लगी.
उन्होंने आगे लिखा कि मेरे पिता ने इस बात को नोटिस कर लिया और मुझे वहां से थोड़ा दूर अलग ले गए और एक शानदार पेप टॉक (उत्साह बढ़ाने वाली बातें) दी. उन्होंने कहा कि इमारत की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है नाकि उस पर लटके झाड़ फानूस पर, जोश से भर दिया उन्होंने फिर एग्जाम दिया. परिणाम भी आया, आगरा के उस सेन्टर से मात्र 2 ही लड़के पास हुए थे जिनमें एक नाम मेरा भी थाईश्वर से प्रार्थना है कि इन पिता पुत्र को भी इनकी मेहनत का मीठा फल दें.
आईपीएस ने आगे लिखा कि आज मेरे पिता हमारे साथ पर नहीं हैं. उनकी कड़ी मेहनत का फल उनकी सिखलाई हर सीख हर पल मेरे साथ है और हर पल यही लगता है कि एक बार और मिल जाएं तो जी भर के गले लगा लूं.
3 दिन 3 परीक्षा
शोभाराम, धार जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर बयडीपुरा गांव में रहते हैं. उनका बेटा आशीष दसवीं में पढ़ता है. इस साल परीक्षा में उसे सप्लीमेंट्री आयी थी. अब दसवीं बोर्ड की सप्लीमेंट्री परीक्षाएं हो रही हैं. आशीष को परीक्षा देने ज़िला मुख्यालय धार आना था. लेकिन वो यहां तक पहुंचता कैसे. कोरोना के कारण बसें बंद हैं. कोई और सवारी गाड़ी भी नहीं चल रही. समस्या विकट थी और वक्त नहीं था. आशीष को परीक्षा देने समय पर धार पहुंचना था. कहीं कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. जब कोई वाहन और किसी से मदद नहीं मिली तो पिता शोभाराम ने बेटे आशीष को अपनी साइकिल पर बैठाकर परीक्षा केंद्र तक लाने का फैसला किया.
बेटे ने कहा
आशीष की लगातार तीन दिन परीक्षाएं हैं. इसलिए पिता-पुत्र दोनों घर से अपना राशन-पानी और सोने के लिए बिछौना लेकर आए हैं. पिता साइकिल चलाता रहा और बेटा अपनी कॉपी किताबों के साथ बोरिया बिस्तर पकड़े साइकिल पर पीछे बैठा रहा. आशीष का कहना है, कोरोना के इस दौर में जब कहीं से मदद नहीं मिल रही थी तब लगा कि मैं परीक्षा नहीं दे पाऊंगा. ऐसे कठिन हालात में पिता ने तय किया कि वो मेरा एक साल बर्बाद नहीं होने देंगे. बस इसी संकल्प के साथ हम चल पड़े और समय पर धार पहुंच गए. हालांकि शोभाराम और आशीष की कठिनाई उसके बाद भी कम नहीं हुई. बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे रहना और परीक्षा की तैयारी करना अपने आप में कितना कठिन रहा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
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