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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए ज़रूरी है कि भारत रक्षा सामग्री निर्माण यानी औद्योगिक ढांचे का विकास कर खुद अपनी ज़रूरतों का सामान बनाए. इसके लिए 2018-19 में बजट भाषण में वित्त मंत्री ने देश में दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (Defence Industrial Corridor) बनाए जाने की घोषणा की थी. इनमें से पहला तमिलनाडु के पांच शहरों और दूसरा उत्तर प्रदेश के छह शहरों में बन रहा है.
तमिलनाडु कॉरिडोर : चेन्नई, होसूर, कोयंबटूर, सलेम और तिरुचिरापल्ली शहरों में रक्षा सामग्री निर्माण और उत्पादन के लिए एक विशेष औद्योगिकीकरण की योजना के तौर पर पहला डिफेंस कॉरिडोर है.
उप्र कॉरिडोर : आगरा, प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, झांसी और चित्रकूट यानी खास तौर से बुंदेलखंड के इलाके में यह देश का दूसरा डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर है.

साल 2025 तक भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना चाहता है.
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क्या है कॉरिडोर की अहमियत?
रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में रणनीतिक तौर पर स्वाबलंबी होने की दिशा में इन कॉरिडोर का खासा महत्व है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रक्षा सामग्री और हथियारों का उत्पादन होने के साथ ही, इन कॉरिडोरों के कारण क्षेत्रीय उद्योगों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, उद्योग रक्षा उत्पादन के लिए ग्लोबल सप्लाई चेन के साथ भी जुड़ सकेंगे. डिफेंस कॉरिडोर के सेटअप से भारत की महत्वाकांक्षा रक्षा क्षेत्र में निर्यातक देश बनने की भी है.
कितने उत्पादन की है उम्मीद?
रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने पिछले दिनों कहा था कि साल 2025 तक भारत का लक्ष्य 25 अरब डॉलर का उत्पादन करने का है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए डिफेंस कॉरिडोर अहम होंगे, जो पूरे योजनाबद्ध तरीके और पूरी क्षमता के साथ देश की रक्षा उत्पादन क्षमता को बढ़ाएंगे. इस लक्ष्य के साथ ही भारत खुद को भविष्य में देशी हथियारों के निर्माता और एक्सपोर्टर के रूप में भी देख रहा है.
इस क्षेत्र में कैसे संभव है तरक्की?
डिफेंस कॉरिडोर न केवल भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए ज़रूरी होंगे, बल्कि रोज़गार बढ़ाने, घरेलू निजी उत्पादन के विकास और स्टार्टअप जैसे उद्यमों के लिए भी मददगार साबित होंगे. सरकार का मानना है कि दुनिया भर में एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस, रिपेयर और ऑपरेशन का बहुत बड़ा बाज़ार है, जो बहुत तेज़ी से विकसित हो रहा है और इसमें भारत को पीछे नहीं रहना है.
फिलहाल भारत में यह बाज़ार 80 करोड़ डॉलर का है और हर साल करीब 8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, जबकि दुनिया में यह औसतन 4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है.

सलेम, तमिलनाडु के डिफेंस कॉरिडोर का हिस्सा है, जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के निवेश को लेकर चर्चा रही.
लक्ष्य बड़े हैं लेकिन उनकी तरफ कदम?
भारत का एक अनुमान यह भी है कि एयरोस्पेस और डिफेंस इंडस्ट्री साल 2030 तक 70 अरब डॉलर तक पहुंचेगी. लेकिन सवाल ये है कि भारत ऐसे कौन से कदम उठा रहा है, जिनसे यह सब संभव हो सकेगा. इसके लिए हाल में हुईं कुछ घोषणाएं और नीतिगत बदलाव संकेत हो सकते हैं.
* पिछले हफ्ते ही रक्षा मंत्रालय ने रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रमोशन नीति यानी DPEPP-2020 को सूत्रबद्ध किया है. आत्मनिर्भर भारत पैकेज की दिशा में इस ड्राफ्ट को अहम कदम माना जा रहा है.
* पिछले दिनों करीब आधा दर्जन जापानी कंपनियों ने उत्तर प्रदेश में निवेश के लिए रुझान दिखाया है. इस सिलसिले में माना जा रहा है कि यह निवेश डिफेंस कॉरिडोर तक भी पहुंचेगा.
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* तीसरे हाल ही रक्षा मंत्रालय ने 101 रक्षा सामानों की लिस्ट बनाई, 2020 से 2024 तक जिनका आयात बंद हो जाएगा. इस बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इसी समय में भारत इन सामानों के उत्पादन में सक्षम हो सके, इसका सुनहरा अवसर है. इसके लिए डिफेंस इंडस्ट्री डीआरडीओ की तकनीक का इस्तेमाल भी कर सकती है. सिंह के मुताबिक यह संभव हो सके, इसके लिए हर ज़रूरी कदम उठाया जाएगा.
* इसके अलावा, रक्षा राज्य मंत्री नाइक ने पिछले हफ्ते कहा कि विदेशी निवेश नीति में और उदारीकरण से फायदा यह होगा कि डिफेंस सेक्टर में ओरिजनल उपकरण निर्माता कंपनियां अपने उत्पादन प्लांट भारत में शिफ्ट कर सकेंगी जिससे अंतर्राष्ट्रीय सप्लाई चेन में भारत की मौजूदगी मज़बूत और व्यापक होगी.
कुल मिलाकर डिफेंस कॉरिडोर के लिए भारतीय रक्षा निर्माता कंपनियां अपने निवेश कर चुकी हैं और उत्पादन शुरू करने की तैयारी में हैं, वहीं विदेशी निवेश लाने के लिए यहां प्रयास ज़ोरों पर हैं. डिफेंस और एयरोस्पेस नीति पर काम कर रही तमिलनाडु सरकार की मानें तो भारत में डिफेंस उत्पादन सेक्टर का 30 फीसदी हिस्सा हासिल करना यहां लक्ष्य है. एक लक्ष्य राज्य में करीब 1 लाख लोगों को रोज़गार के मौके देना भी इस सेक्टर का लक्ष्य है.
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